शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

दर्द का ये सिलसिला


..दर्द का ये सिलसिला


स्वप्न टूटते रहे
फिर भी देखते रहे
और उनका देखना तो कम नहीं हुआ अभी
दर्द का ये सिलसिला खत्म नहीं हुआ कभी


आँख का कुसूर क्या न नींद से कोई गिला
ये तो वो मकाम है जो जागकर नहीं मिला
चाहतों की बस्तियों में सब किसी को ठौर है
तुम नहीं मिले तो कहीं और कोई और है
 ये कारवां जो चल दिया तो फिर नहीं रुका कभी
 दर्द का ये सिलसिला खत्म नहीं हुआ कभी


क्या बतायें आप को किसने है दगा दिया
लूटकर गए वही जिनको आसरा दिया
भूल जायें उनको हम यह न अपने हाथ है
रस्म को निभायें हम और अलग बात है
 कौन है अपना, जताये हमको अपनापन कभी
 दर्द का ये सिलसिला खत्म नहीं हुआ कभी


ज़िंदगी की हाट में बिक रहा इंसान है
आँख में पानी नहीं बोली लगा ईमान है
और अब इंसानियत बैसाखियों पर चल रही
देख लो आखिर तुम्हारी क्या यही पहचान है
 शब्द में संबोधनों में अर्थ ढूँढे हम सभी
 दर्द का ये सिलसिला खत्म नहीं हुआ कभी


आइना थे आ गये हम पत्थरों के गाँव में
टूट कर चुभते रहे खुद ही अपने पाँव में
दर्द के अहसास को ज़ाहिर नहीं होने दिया
एक भी आँसू न छलके आँख से सौदा किया
 उसके बदले मुस्कराहट बेच दी उसको सभी
 दर्द का ये सिलसिला खत्म नहीं हुआ कभी
    स्वप्न टूटते रहे
    फिर भी देखते रहे


 

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