रविवार, 13 मई 2012








किसकी गोदी में अंकुर से फूटे ,महके और मुस्काए
किसकी ममता ने सींचा,सहलाया,बीज व्रक्छ बन जाए
किसके आंचल में लुक छिपकर,तुमने आँख मिचोनी खेली
कौन ओदकर बीट बचपन,तुमसे फिर तुतलाकर बोली
,
कौन सो गया नीद तुम्हारी,कौन जगा गहरी रातों में
कष्ट तुम्हारा दर्द हमारा,क्या रिश्ता था उन बातों में
किसने देवी देव पुजाये,कोई सङ्कट तुम्हे न घेरे
मन्दिर में परशाद चडाए,मांगी मंनत साँझ सबेरे

किसके कांधे पर सिर रखकर,बचपन को आवाज लगाई
फिर से मैया मोरी कहकर,ममता की कुछ उमर बढाई
किसने हाथ पकड कर तुमको,जीवन के सोपान चडाए
क्या अच्छा क्या बुरा बताकर,मानवता के गुण समझाये

समय मिले तो खोल खिद्कियाँ,मन के अन्दर कभी झाँकना
गर्द हटा जीवन पुस्तक की,फिर अतीत के पृष्ठ बांचना