रविवार, 6 अप्रैल 2014



तुम आने की बात कहो तो


मैं नयनों के द्वार खोल कर
निशिदिन प्रतिपल बाट निहारूँ
तुम आने की बात कहो तो


 पतझड़ यहाँ न आने पाये
 मौसम का पहरा लगावा दूँ
 उपवन में खिलते गुलाब का
 रंग तनिक गहरा करवा दूँ
  रजनीगंधा के फूलों से
  रातों की मैं गंध चुराकर
  चम्पा और चमेली के संग
  हरसिंगार बनकर बिछ जाऊँ
  तुम आने की बात कहो तो


 नदियों में आ जाय रवानी
 पत्थर पिघले पानी-पानी

 पर्वत को राई कर दूँ मैं
 सागर गागर में भर दूँ मैं
  तुम कह दो तो हाथ उठाकर
  नभ उतार धरती पर धर दूँ
  चाँद-सूर्य से करूँ आरती
  नक्षत्रों के दीप जलाऊँ
  तुम आने की बात कहो तो


 तुम चाहो बन जाऊँ अहिल्या
 पत्थर बनकर करूँ प्रतीक्षा
 जले न स्वाभिमान सीता का
 कब तक लोगे अग्निपरीक्षा
  रामनाम की ओढ़ चदरिया
  प्रेम रंग तन-मन रंग डालूँ
  मीरा बनकर ज़हर पियूँ मैं
  राधा बनकर रास रचाऊँ
  तुम आने की बात कहो तो






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मन को रंग देता सब कोई 
तुम ये मेरा मन रंग देना 
  ऐसा रंगना रंग ना छूटे 
  ये सारा जीवन रंग देना 

रंगना छूटे सभी खिलोने 
बीती बातें समय सलोने 
दीवारों पर तस्वीरों में 
जड़ा हुआ बचपन रंग देना 
तुम ये मेरा मन रंग देना 

आँखें लाज शर्म की मारी 
खेलें नज़रों से पिचकारी 
सागर की उत्ताल तरंगित 
लहरों सा यौवन रंग देना 
तुम ये मेरा मन रंग देना 

मेंहदी रंगना महावर रंगना 
फेरों वाली भांवर रंगना 
अनुबंधों के रंग घोलकर 
तुम वो सात वचन रंग देना 
तुम ये मेरा मन रंग देना 

रंगना होली और दिवाली 
करवाचौथ तीज हरियाली 
आँगन ड्योढ़ी रहे न खाली 
देहरी द्वार भवन रंग देना 
तुम ये मेरा मन रंग देना 

सूखी रंगना गीली रंगना 
लाल गुलाबी पीली रंगना 
तितली सी चटकीली रंगना 
आँखों भरा सपन रंग देना 
तुम ये मेरा मन रंग देना 

ऐसा रंगना रंग ना छूटे 
ये सारा जीवन रंग देना 

विनीता  शर्मा