रविवार, 6 अक्तूबर 2013

आ भी जाओ याद की पुरवाईयाँ चलने लगी हैं

Vinita Sharma <vinitasharma2011@gmail.com>
6:40 PM (2 hours ago)
to me
आ भी जाओ,याद की पूरवाइयां चलने लगी हैं 
और मेरा ये पलाशी मन दहकने सा लगा है 
    
बादलों ने मेह बरसाकर किये 
शीतल धरा के ताप सारे 
एक अँगडाई लहर की 
धो गयी नदिया किनारे 
क्या कहा ऋतू ने दिखा 
दर्पण बहारों का उन्हें मेरा ये 
पतझरी हर ड़ाल पर 
योवन उतरने सा लगा है
और मेरा ये पलाशी मन दहकने सा लगा है

रात ने फिर चाँद किरणों से 
बुना, तारों जडा,   ओदा दुशाला 
चांदनी के उस रुपहली रूप से 
आने लगा छनकर उजाला 
लाज का आँचल सरकने 
सा लगा है खुदबखुद ही 
तप  रही संयम शिला  
हिमकन पिघलने सा लगा है 
और मेरा ये पलाशी मन दहक्ने सा लगा है

लीप मन के द्वार, देहरी 
सिंदूरिया सतिये सजाये 
पुतलियाँ ठहरी प्रतीक्षारत 
अकथ अनुराग के दीपक जलाए 
मन बसी परिचित   तुम्हारी 
गंध का स्पर्श पाकर 
मिलन का मधुवन अचानक  
फिर महकने सा लगा है 
और मेरा ये पलाशी मन दहकने सा लगा है

आ भी जाओ याद की पुरवाइयाँ चलने लगी हैं 
और मेरा ये पलाशी मन दहकने सा लगा है