सोमवार, 23 जनवरी 2012

रात जलती रही...


कोई उजली सुबह जन्म ले इसलिए
रात जलती रही तम पिघलता रहा


तम के अहसास का आज दम तोड़ने
हमने देकर चुनौती जलाए दिये
आँधियाँ आ गई रोशनी माँगने
हमने भ्रम ओढ़कर घुप अँधेरे जिये
 कुछ उजाले रहे, इसीलिये लौ सदा
 घर बदलती रही, दीप जलता रहा
 रात जलती रही तम पिघलता रहा


जिनको चाहा वही दूर जाते रहे
भूल जाते मगर याद आते रहे
सोचते ही रहे कौन हो तुम जिसे
कल्पना में बनाते-मिटाते रहे
 एक अनुमान का घर पता पूछते
 उम्र घटती रही, वक्त बढ़ता रहा
 रात जलती रही तम पिघलता रहा


कोरा कागज़ कफ़न का था मन आपने
रंग चूनर के भर हौसले बुन दिये
प्राण पंछी ने आकर बसेरा किया
उम्र की शाख पर घोंसले बुन दिये
 हम जिये तो मगर इस तरह से जिये
 साँस चलती रही दम निकलता रहा
 रात जलती rahii tam pighalta rha

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