मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

ज़िंदगी क्या है?

जिंदगी क्या है?
सांसो के चलने का अदभुत अहसास
सागर में तैरती अनबुझी प्यास
जिंदगी क्या हें ?
मांगी हुई मन्नत कहूँ तो दिल डूब जाता हें
सारी ख़ामोशी दांव पर लगाकर भी
देने वाले की दीनता ने इल्जाम बख्श दिए
और बिन मागें मोती से वे इल्जाम
झोली में भरे हम ,वक्त के वायदों से
गुमनाम मंजिल का अतापता पूछते रहे
क्योंलाँघ नही पाए फ़र्ज़ के दायरे, लक्ष्मण रेखा को
इन हरे भरे घावो को समय सहलाएगा
फिर कोइ संस्कार मरहम लगाएगा
और नया समझौता मन बहलायेगा
जिंदगी बहेगी फिर उसी रफ्तार
डूबते किनारे और टूटते कंगार
स्वयं से पूछेंगे
जिंदगी की हलचल में क्या खोया क्या पाया
क्या लिया और दिया
कैसे तू जिया ?
एक अनुत्तर प्रश्न बंद दरवाजे पर दस्तक लगाएगा
उत्तर की आशा में द्वार खुलवाएगा
ज़िंदगी क्या हें?

2 टिप्‍पणियां:

  1. किसी शायर ने कहा ‘ज़िंदगी क्या है... गम का दरिया है’ तो किसी कवि ने कहा ’बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख’ जीवन को इस पहेली को बूझते बूझते जीवन ही बीत जाता है पर हल शायद ही मिले :) सुंदर कविता के लिए बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी ज़िन्दगी के ऊपर ये कविता बहुत ही सुन्दर है ...

    जवाब देंहटाएं