तुम आने की बात कहो तो
मैं नयनों के द्वार खोल कर
निशिदिन प्रतिपल बाट निहारूँ
तुम आने की बात कहो तो
पतझड़ यहाँ न आने पाये
मौसम का पहरा लगावा दूँ
उपवन में खिलते गुलाब का
रंग तनिक गहरा करवा दूँ
रजनीगंधा के फूलों से
रातों की मैं गंध चुराकर
चम्पा और चमेली के संग
हरसिंगार बनकर बिछ जाऊँ
तुम आने की बात कहो तो
नदियों में आ जाय रवानी
पत्थर पिघले पानी-पानी
पर्वत को राई कर दूँ मैं
सागर गागर में भर दूँ मैं
तुम कह दो तो हाथ उठाकर
नभ उतार धरती पर धर दूँ
चाँद-सूर्य से करूँ आरती
नक्षत्रों के दीप जलाऊँ
तुम आने की बात कहो तो
तुम चाहो बन जाऊँ अहिल्या
पत्थर बनकर करूँ प्रतीक्षा
जले न स्वाभिमान सीता का
कब तक लोगे अग्निपरीक्षा
रामनाम की ओढ़ चदरिया
प्रेम रंग तन-मन रंग डालूँ
मीरा बनकर ज़हर पियूँ मैं
राधा बनकर रास रचाऊँ
तुम आने की बात कहो तो
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आपके इस गीत ने बचपन से ही अति प्रिय भारत भूषण जी के एक गीत की याद दिला दी. संयोग से वह नेट पर मिल भी गया. उद्धृत कर रहा हूँ -
जवाब देंहटाएंप्रिय मिलने का वचन भरो तो
भारत भूषण
सौ-सौ जन्म प्रतीक्षा कर लूँ
प्रिय मिलने का वचन भरो तो
पलकों-पलकों शूल बुहारूँ
अँसुअन सींचूँ सौरभ गलियाँ
भँवरों पर पहरा बिठला दूँ
कहीं न जूठी कर दें कलियाँ
फूट पड़े पतझर से लाली
तुम अरुणारे चरन धरो तो
रात न मेरी दूध नहाई
प्रात न मेरा फूलों वाला
तार-तार हो गया निमोही
काया का रंगीन दुशाला
जीवन सिंदूरी हो जाए
तुम चितवन की किरन करो तो
सूरज को अधरों पर धर लूँ
काजल कर आंजूँ अंधियारी
युग-युग के पल-छिन गिन-गिनकर
बाट निहारूँ प्राण तुम्हारी
साँसों की ज़ंजीरें तोड़ूँ
तुम प्राणों की अगन हरो तो