मन में कुछ हूक हुई...
मन में कुछ हूक हुई वाणी फिर मूक हुई
आँखों में पीड़ा के तरल छंद तिरने लगे
क्षण भर में आँसू बन बूँद-बूँद गिरने लगे
पंछी के कलरव ने पेड़ों पर गीत रचे
डाल-डाल पात-पात नव-निर्मित नीड़ रचे
फूलों को देह मिली सुरभित सुगंधों की
पाँखुरियाँ बाँध रहीं चूनर, सब रंगों की
लतिकाएं लिपट गई पेड़ों की शाखों से
देख रही दृश्य प्रकृति अर्ध-खुली आँखों से
जिस बगिया कण-कण में छाया बसंत हो
कलियों की बाहों में भँवरे सा कंत हो
आसमान व्याकुल है धरती पर आने को
महकती दिशाओं से अमृत-कण झरने लगे
आँखों में पीड़ा के तरल छंद तिरने लगे
क्षण भर में आँसू बन बूँद-बूँद गिरने लगे
सकुचे सकुचाये सब दिग-दिगंत हो गए
क्या हुआ कि कलियों के कंत संत हो गए
बांझ हो गई बहार, खार-ख़ार है चमन
फूल के शबाब पर गीत बंद हो गए
वासंती बगिया से पूछ रही पुरवाई
किसने विष घोला है कौन हुआ हरजाई
इस ऋतु के आँगन में सरसों से ज़र्द हुए
होनहार बिरवों के पात-पात गिरने लगे
व्योम-धरा मौन हुई, रेत भरी अंगुरी सी
एक एक कण जैसे प्रश्नचिह्न मिटने लगे
आँखों में पीड़ा के तरल छंद तिरने लगे
क्षणभर में आँसू बन बूँद-बूँद गिरने लगे
मन की अवसाद भरी श्यामल सी घाटी में
बिजली सी कौंध गई जीवन की रेखायें
मुस्कानें कैद हुई खुशियों की आयु घटी
झूठी कहलाई सब हाथों की रेखायें
कोई यह वर दे दे जो भी ना कह पायें
विष जैसा पीकर हम नीलकंठ बन जायें
ऐसी कुछ शक्ति जगे मन में वह भक्ति रमे
आगत की आहट से बंद द्वार खुल जायें
जाने किन यादों ने आँखें छलकाई हैं
वर्षों से सूख गये भरे घाव रिसने लगे
आँखों में पीड़ा के तरल छँद तिरने लगे
क्षण भर में आँसू बन बूँद-बूँद गिरने लगे
मन में कुछ हूक हुई
वाणी
वासंती बगिया से पूछ रही पुरवाई
जवाब देंहटाएंकिसने विष घोला है कौन हुआ हरजाई
बिरहन के लिए वासंती बगिया ही तो हिय में अगन लगाती है।
मन में कुछ हूक हुई...इतना सुन्दर कैसे लिखा है.
जवाब देंहटाएंआदरणीया विनीता जी सादर नमस्कार आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ सुंदर गीत पढने को मिला बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया वर्ड वैरिफिकेसन हटा दीजिये