ओ सीमा के सजग सिपाही
कठिन राह के कर्मठ राही
तुम घर आँगन के चंदा हो
घर-घर का तुमसे नाता है
भारत तुमसे यश पाता है
तुमने अनबन करी नींद से
तब स्वतंत्र यह सुबह जगाई
अपनी साँसें बंधक रखकर
हमको आज़ादी दिलवाई
बदले है भूगोल तुम्हीं ने
तुमने ही इतिहास दिये है
बाँटी खुशियाँ महल-झोपडी
खुद तुमने बनवास लिये हैं
तुम स्वतंत्रता के सृष्टा हो
शौर्य तुम्हारा शिल्पकार है
कीर्ति तुम्हारी अधर-अधर पर
शब्दों में गौरव-गाथा है
भारत तुमसे यश पाता है
रिश्ता तुमसे सभी उमर का
अंतहीन इस जनम-मरण का
कर्ज़ चुका पायेंगे कैसे
बढ़ते हर गतिमान चरण का
यादों को घर भेज दिया, मन
कहीं लक्ष्य से भटक न जाये
हाथों में बंदूक उठाकर
सीमा पर दृढ़ कदम बढ़ाये
कीर्ति पताका पर तेरी हम
जड़ देंगे सब चाँद सितारे
तुम सूरज उग रही भोर के
हर आँगन तुमको भाता है
भारत तुमसे यश पाता है
कसम तुम्हें इस जन-गण-मन की
तेरी बांकी शान न टूटे
जब तक तुम प्रहरी बन जागो
कोई हिंदुस्तान न लूटे
हरे-भरे दिखते जो सबको
खेत और खलिहान तुम्हीं से
जन-जन की जो भूख मिटाये
फसलें और किसान तुम्हीं से
पर्वत से गहरी घाटी तक
मरुथल से गीली माटी तक
कृषक चैन की बजा बाँसुरी
बैठ मचानों पर गाता है
भारत तुमसे यश पाता है
कितने खोए पुत्र पिता भी
कितने पति हो गए निछावर
बहनों ने भाई को भेजा
राखी तिलक किए आँख भर
मेंहदी रचे हुए हाथों की
कितनी बार चूडियाँ टूटी
गाज गिरी कितने सपनो पर
छुटे महावर बिंदिया छूटी
तुम से जीवन के सुख-दुख की
कितनी यादें जुड़ी हुई हैं
शब्द मौन हैं आँखे भीगी
स्वर अवरुद्ध हुआ जाता है
भारत तुमसे यश पाता है
ओ सीमा के सगज सिपाही...
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