तुम याद आए
तुम याद आये
आँखों में डूब गये
शब्दों के साये
तुम याद आये
नीले नभ में बिखरी-बिखरी
छोटी-बडी होती सी श्वेत-वर्ण आकृतियाँ
श्याम वर्ण होने लगी
चातक की दर्द भरी प्यासी पुकार सुनी
बादल की आँखों में आँसू भर आये
रिमझिम रिमझिम मेघा बरसाये
मस्त हुए मोरों ने पंख फैलाये
तुम याद आये
साँझ ढली सूरज की किरणें कुम्हलाई
छोटी से बड़ी हुई अपनी ही परछाईं
चरवाहे लौट गये थकी सांस घर आई
संध्या ने सौंप दिया राजपाठ रजनी को
स्वप्न सजे नींद भरी आँखें अलसाई
चंदा ने तारों से रजनी की माँग भरी
पानी के दर्पण में देखे, शरमाये
तुम याद आये
दिन निकला रात गई
बीती सो बात गई
आने का वादा कर लौट गई चाँद परी
पंछी ने नभ में फिर ऊँची उड़ान भरी
उजियारे द्वार-द्वार दस्तक दे आये
भोर भई भक्तों ने पत्थर की
प्रतिमा में प्राण से जगाये
पर्वत के पीछे से सूरज ने ऊषा को
सोने सी किरणों के कंगना पहनाये
तुम याद आये।
मन को माह लेती हैं आपकी रचनाएं.
जवाब देंहटाएंबार बार पढने की इच्छा होती है.
आपकी रचनाओं में बहुत ही रस है ....
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