सूर्य कि उस रोशनी
सूर्य की उस रोशनी की धूल हूँ मैं
आग का गोला स्वयं हूँ
कोहरा हूँ मैं सुबह का
साँझ की मैं साँस हूँ
ज्योत्सना हूँ चन्द्रमा की
क्षितिज का आमास हूँ
मैंने जगाई है चमक दो पत्थरों में
धातुओं में घातु हूँ सोना खरा मैं
मैं हवा उस बाग की
जो पी गई खुशबू गुलाबों की
मैं कड़ी उस जीव की
जो है बनाता दायरे
वह तराज़ू सृष्टि की
जो तौलता, गिरता उठाता
मैं वही हूँ जो नहीं है
और है भी--
मैं सभी की आत्मा हूँ
मैं स्वयं परमात्मा हूँ
गीता सार समेट लिया है आपने इन पंक्तियों में। बधाई स्वीकारें॥
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