३७- साझ हुई सिंदूरी..
सांझ हुई सिंदूरी गुलमुहर झरने लगे
लाल लाल फूल धरा सेज पर सजाये हैं
यादों में गुज़रे ज़माने लौट आये हैं
तुम्हारे इंतज़ार में , तुम्हारे इंतेज़ार में
पत्ते पलाश के सब पीले से पड़ गये
किसके वियोग में एक एक झड़ गये
अब भी कंकाल वृक्ष हौसला बनाये है
यादों में गुज़रे ज़माने लौट आये हैं
तुम्हारे इंतज़ार में, तुम्हारे इंतेज़ार में
सांझ हुई सिंदूरी गुलमुहर झरने लगे
सकरी पगडंडियां सब जवाँ हुई बनी गली
बाट जोहते हुए फूल बन गई कली
आज फिर माटी के घरोंदे बनाये हैं
यादों में गुज़रे ज़माने लौट आये हैं
तुम्हारे इंतज़ार में तुम्हारे इंतज़ार में
सांझ हुई सिंदूरी गुलमुहर झरने लगे
गंध उड़ी हौले से मधुवन जुहार आई
पवन चली पछुआ की आँगन बुहार आई
चौखट चौबारों पर चौक फिर पुराये हैं
यादों में गुज़रे ज़माने लौट आये हैं
तुम्हारे इंतज़ार में, तुम्हारे इंतेज़ार में
सांझ हुई सिंदूरी गुलमुहर झरने लगे
बूढे से बरगद ने बाँहें फैलाई है
नीम से निंबौरियाँ नीचे उतर आई हैं
पाखी-पखेरू ने पंख फैलाये हैं
यादों में गुज़रे ज़माने लौट आये हैं
तुम्हारे इंतज़ार में, तुम्हारे इंतेज़ार में
सांझ हुई सिंदूरी गुलमुहर झरने लगे....
मानव और प्रकृति का सुंदर वर्णन... बधाई विनिता शर्मा जी॥
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