जिसे हम गीत कहते हैं
जिसे हम गीत कहते हैं
किसी के दर्द से जन्मी हुई वैदिक ऋचायें हैं
सहज संवेदनायें हैं
किसी कवि ने कहा करुणा-कलित हो चंद छंदों में
बनी सत प्रेरणा सद भावना समवेत ग्रंथों में
वनों में रम रहे ऋषि ने कहा जो वेद-वाणी में
वो बचपन में सुनी हमने कभी माँ से कहानी में
विगत में ताड़ पत्रों पर लिखी जातक कथायें हैं
समय की मान्यतायें हैं
जिसे हम गीत कहते हैं
किसी के दर्द से जन्मी हुई वैदिक ऋचायें हैं
सहज संवेदनायें हैं
यही तो पत्थरों में प्रस्फुटित परिकल्पना सी है
यही तस्वीर के रंग में सजाई अल्पना सी है
अश्रुपूरित आँख की ये अनकही अनुयाचना सी है
दुआ को उठ रहे दो हाथ की ये वंदना सी है
निरंतर मंदिरों में गूँजती सी प्रार्थनायें हैं
समर्पित साधनायें हैं
जिसे हम गीत कहते हैं
किसी के दर्द से जन्मी हुई वैदिक ऋचायें हैं
सहज संवेदनायें हैं
नदी तट बैठ हमने भावना के दीप-दहकाये
किये जल में प्रवाहित कुछ नहीं सोचा कहाँ जाये
कोई ठहरे वहीं कुछ बह गये मझधार में आये
किसी को ले गई लहरें बहा उस पार पहुँचाये
हृदय के भाव शब्दों को समर्पित व्यंजनायें हैं
कवि की कल्पनायें हैं
जिसे हम गीत कहते हैं
किसी के दर्द से जन्मी हुई वैदिक ऋचायें हैं
सहज संवेदनायें हैं
अब ऐसी ऋचाएं कम ही सुनने पढ़ने को मिलती हैं।
जवाब देंहटाएंएक दुर्लभ किस्म की अभिव्यक्ति से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद । मेरे पोस्ट भगवती चरण वर्मा पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद । Please remove word verification.
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