तुम ओढ़ चुनरिया
कल मेघों ने पाती भिजवाई बूँदों से
तुम ओढ़ चुनरिया धानी सी मिलने आना
जब कोयल कूक सुनाती हो
मीठे स्वर में कुछ गाती हो
ऋतु आने को, मदमाती हो
तुम पहन पायलिया घुँघरू की बजती आना
तुम ओढ़ चुनरिया धानी सी मिलने आना
फूली केसर की क्यारी हो
खुशबू की खुली पिटारी हो
आई बसंत की बारी हो
गजरा जूड़े में बाँध मुझे भी महकाना
तुम ओढ़ चुनरिया धानी सी मिलने आना
जब अंतरतम अकुलाता हो
मन पीड़ा से भर जाता हो
बिन बोले तुम्हें बुलाता हो
तुम अपनेपन की गर्मी से
मेरी पीड़ा को पिघलाना
तुम ओढ़ चुनरिया धानी सी मिलने आना
जब चाँदी जड़ी जुन्हाई हो
चहुँ ओर चाँदनी छाई हो
महकी महकी पुरवाई हो
बहकी बहकी तनहाई हो
तुम श्याम बंसुरिया सी अधरों से लग जाना
बजती रहना मन-प्राणों में फिर मत जाना
कल मेघों ने पाती भिजवाई बूँदों से
तुम ओढ़ चुनरिया धानी सी मिलने आना
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