जब जब याद तुम्हारी आती
मन में है पीड़ा अकुलाती
शब्दों में आशीष पिरोकर
माँ लिखती है तुमको पाती
जब तक साँसों की सरगम है
जब तक यह शरीर सक्षम है
जब तक लिखती रहे कलम है
जब तक रिश्तों में कुछ दम है
माँ भेजेगी तुम को पाती
याद रहेगी फिर भी आती
कोई ऐसा दिन भी होगा
जब न लिखेगी माँ फिर पाती
लौ डूबेगी दिया बुझेगा
खतम रोशनी दिया न बाती
तब तुम क्या मेरे कानों में
राम नाम कहने आओगे
जीवन की अंतिम यात्रा में
काँधों पर लेकर जाओगे
बनकर धुआँ समा जायेगा
मेरा यह अस्तित्व गगन में
यही सत्य है यही नित्य है
दुहराते रहना तुम मन में
फिर पत्ते पर दिया जला कर
बहती धारा में रख देना
दूर जहाँ तक दिखे रोशनी
स्वर से मुक्ति मंत्र पढ़ देना
कहना माँ उस देश गई अब
जहाँ न जाये सखा-संघाती
धीरज धर धीरे से कहना
अब न दिखेगी माँ फिर पाती
अब न मिलेगी माँ की पाती
बडा कष्टदायी बिछोह होता है यह तो॥ मन को छू गई यह कविता।
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