शब्दम्
कवयित्री विनीता शर्मा का ब्लॉग
मंगलवार, 27 दिसंबर 2011
न सोचो ढल गया दिन वक्त की तारीख में
उतरती शाम की रंगीन होती सुर्खियाँ देखो
न भय खाओ अंधेरों से बदलता दौर है ये
निकलती सूर्य के घर से चमकती रश्मियाँ देखो
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