किस किस को...
किस किस को बतलायें
किसको हम दिखलायें
कैसे इस जीवन की फटी हुई चादर को
सिला और ओढ़ा है।
अश्रु भले सूखें पर आँख में नमीं रहे
दर्द भीगते रहें ज़िंदगी थमी रहे
इसलिए तमाम उम्र रात-रात जागकर
एक एक शबनम को
आँखों में जोड़ा है
किस किस को बतलायें...
शून्य चेतना बनें प्राण छूटने लगे
अंत समय शांति हो मोह टूटने लगे
इसलिए तमाम उम्र नित्य ध्यान मग्न हो
एक एक बंधन को
धीरे से तोड़ा है
किस किस को बतलायें...
कार्य कठिन हो भले कालजयी दृष्टि हो
लक्ष्य अर्थपूर्ण हो तुम समग्र सृष्टि हो
इसलिए तमाम उम्र हम कहीं रुके नहीं
एक एक राह को
मंज़िल तक मोड़ा है
किस किस को बतलायें
किसको हम दिखलायें
कैसे इस जीवन की फटी हुई चादर को
सिला और ओढ़ा है।
इस चदरिया को तो बस ज्यों की त्यों रख देना है॥
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