शब्दम्
कवयित्री विनीता शर्मा का ब्लॉग
शुक्रवार, 1 अगस्त 2014
खेलते रहे
आँखों के आँगन में
मीठे सपने
जाना था मैने
उठते हैं दो हाथ
दुआ के लिए
क्रोध क्या है
मोह से उत्पन्न
स्थायी भाव
हवा से डरे
गुलमोहर झरे
रक्त भरे
विनीता शर्मा
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