मिल जुल कर रहना तुम ऐसे रहते जैसे नदिया पानी
फडके जब भी आँख समझना हुई तुम्हारी याद सयानी
आखे रहे देखती सपने रात्रि दिवस का भेद नही हो
प्यार कवच हो संबन्धो का भूल चूक से खेद नही हो
कह् न सको तो पाती लिखकर दुहरा देना बात बयानी
ज्ञान प्रेरणा कुछ पाने की प्रेम भावना खो जाने की
एक मांगता पूर्ण समर्पण दूजा खुद को करता अर्पण
ल्क्ष्य एक ही खोना पाना प्रेमी हो या मुनिवर ज्ञानी
महल झोंपड़ी रहने वाले हाथों अलग अलग रेखाएँ
कोइ धन के सागर डूबे कोई मन के घाट नहाये
संरचना है ऐक सभी की कोई याचक कोई दानी
लिखो कथानक कोई ऐसा अन्तरतम संघर्ष जगाये
जागे जिज्ञासा आखिर तक प्रश्नों के सन्दर्भ उठाए
संवादो के द्वार् खोलकर कहने आये पात्र कहानी
मिल जुल कर रहना तुम ऐसे रहते जैसे नदिया पानी
फडके जब भी आँख समझना करता कोई याद पुरानी
‘ प्यार कवच हो संबन्धो का भूल चूक से खेद नही हो
जवाब देंहटाएंकह न सको तो पाती लिखकर दुहरा देना बात बयानी’
मधुर संबंधों की बुलंदियों को छूते विचार। सुंदर कविता के लिए बधाई विनिता शर्मा जी॥