मंगलवार, 24 नवंबर 2015

चेहरे पर लाइने बेसबब नहीं हुआ करती
हादसों के ग़म का हिसाब लिखा होता है
उम्र गुज़रते हुए नक्श छोड़ जाय जहाँ
सफ़र के सवालों का जबाब लिखा होता है

विनीता शर्मा 

शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

न करना बात मज़हब की 
इबादत में यकीं रखना 
परिंदों सा बसेरा कर 
न घर रखना,ज़मीं रखना 
जो शामिल आरती में हैं 
अजानों  में सहर करते 
मुहब्बत एक मकसद है 
सुकू से उम्र भर रहते  
खेलते रहे 
आँखों के आँगन में 
मीठे सपने 

जाना था मैने 
उठते हैं दो हाथ 
दुआ के लिए 

क्रोध क्या है 
मोह से उत्पन्न 
स्थायी भाव 

हवा से डरे 
गुलमोहर झरे 
रक्त  भरे 

विनीता  शर्मा 

रविवार, 6 अप्रैल 2014



तुम आने की बात कहो तो


मैं नयनों के द्वार खोल कर
निशिदिन प्रतिपल बाट निहारूँ
तुम आने की बात कहो तो


 पतझड़ यहाँ न आने पाये
 मौसम का पहरा लगावा दूँ
 उपवन में खिलते गुलाब का
 रंग तनिक गहरा करवा दूँ
  रजनीगंधा के फूलों से
  रातों की मैं गंध चुराकर
  चम्पा और चमेली के संग
  हरसिंगार बनकर बिछ जाऊँ
  तुम आने की बात कहो तो


 नदियों में आ जाय रवानी
 पत्थर पिघले पानी-पानी

 पर्वत को राई कर दूँ मैं
 सागर गागर में भर दूँ मैं
  तुम कह दो तो हाथ उठाकर
  नभ उतार धरती पर धर दूँ
  चाँद-सूर्य से करूँ आरती
  नक्षत्रों के दीप जलाऊँ
  तुम आने की बात कहो तो


 तुम चाहो बन जाऊँ अहिल्या
 पत्थर बनकर करूँ प्रतीक्षा
 जले न स्वाभिमान सीता का
 कब तक लोगे अग्निपरीक्षा
  रामनाम की ओढ़ चदरिया
  प्रेम रंग तन-मन रंग डालूँ
  मीरा बनकर ज़हर पियूँ मैं
  राधा बनकर रास रचाऊँ
  तुम आने की बात कहो तो






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मन को रंग देता सब कोई 
तुम ये मेरा मन रंग देना 
  ऐसा रंगना रंग ना छूटे 
  ये सारा जीवन रंग देना 

रंगना छूटे सभी खिलोने 
बीती बातें समय सलोने 
दीवारों पर तस्वीरों में 
जड़ा हुआ बचपन रंग देना 
तुम ये मेरा मन रंग देना 

आँखें लाज शर्म की मारी 
खेलें नज़रों से पिचकारी 
सागर की उत्ताल तरंगित 
लहरों सा यौवन रंग देना 
तुम ये मेरा मन रंग देना 

मेंहदी रंगना महावर रंगना 
फेरों वाली भांवर रंगना 
अनुबंधों के रंग घोलकर 
तुम वो सात वचन रंग देना 
तुम ये मेरा मन रंग देना 

रंगना होली और दिवाली 
करवाचौथ तीज हरियाली 
आँगन ड्योढ़ी रहे न खाली 
देहरी द्वार भवन रंग देना 
तुम ये मेरा मन रंग देना 

सूखी रंगना गीली रंगना 
लाल गुलाबी पीली रंगना 
तितली सी चटकीली रंगना 
आँखों भरा सपन रंग देना 
तुम ये मेरा मन रंग देना 

ऐसा रंगना रंग ना छूटे 
ये सारा जीवन रंग देना 

विनीता  शर्मा 
 

सोमवार, 20 जनवरी 2014

बूँद बन बरसी नहीं जो नम हुयी उस आँख से 
आप भी अपना कभी दामन भिगो कर देखिये 
दूसरे की चुभन का अहसास होने के लिए 
पाँव में अपने कभी काँटा चुभो कर देखिये 
है नहीं मुमकिन किसी की नीद सोएं आप हम 
किन्तु उसकी आँख का सपना सजो कर देखिये 
संवेदना उगने लगेगी भाव की उस भूमि में 
हो अगर सम्भव किसी का दर्द बोकर देखिये 

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

आ भी जाओ याद की पुरवाईयाँ चलने लगी हैं

Vinita Sharma <vinitasharma2011@gmail.com>
6:40 PM (2 hours ago)
to me
आ भी जाओ,याद की पूरवाइयां चलने लगी हैं 
और मेरा ये पलाशी मन दहकने सा लगा है 
    
बादलों ने मेह बरसाकर किये 
शीतल धरा के ताप सारे 
एक अँगडाई लहर की 
धो गयी नदिया किनारे 
क्या कहा ऋतू ने दिखा 
दर्पण बहारों का उन्हें मेरा ये 
पतझरी हर ड़ाल पर 
योवन उतरने सा लगा है
और मेरा ये पलाशी मन दहकने सा लगा है

रात ने फिर चाँद किरणों से 
बुना, तारों जडा,   ओदा दुशाला 
चांदनी के उस रुपहली रूप से 
आने लगा छनकर उजाला 
लाज का आँचल सरकने 
सा लगा है खुदबखुद ही 
तप  रही संयम शिला  
हिमकन पिघलने सा लगा है 
और मेरा ये पलाशी मन दहक्ने सा लगा है

लीप मन के द्वार, देहरी 
सिंदूरिया सतिये सजाये 
पुतलियाँ ठहरी प्रतीक्षारत 
अकथ अनुराग के दीपक जलाए 
मन बसी परिचित   तुम्हारी 
गंध का स्पर्श पाकर 
मिलन का मधुवन अचानक  
फिर महकने सा लगा है 
और मेरा ये पलाशी मन दहकने सा लगा है

आ भी जाओ याद की पुरवाइयाँ चलने लगी हैं 
और मेरा ये पलाशी मन दहकने सा लगा है